वातायन के संस्थापक एवं स्पंदन के प्रधान सम्पादक डॉ0 ब्रजेश कुमार का निधन
शहर के दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व प्राध्यापक एवं साहित्यिक पत्रिका स्पंदन के प्रधान सम्पादक डॉ0 ब्रजेश कुमार का मंगलवार को प्रातः निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे। डॉ0 ब्रजेश कुमार की शिक्षा-दीक्षा इलाहाबाद में हुई और अध्ययन पूर्ण करने के बाद उन्होंने उरई को अपनी कर्मस्थली के रूप में चयनित किया और महाविद्यालय को दो दशक से अधिक समय तक अपनी सेवायें प्रदान की।
उत्कृष्ट साहित्यिक प्रतिभा के धनी डॉ0 ब्रजेश का रंगमंच के प्रति भी जबरदस्त लगाव था। उन्होंने उरई जैसे छोटे से शहर में आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व जबकि शहर में रंगमंचीय कार्यक्रमों के प्रति लोगों की विशेष रुचि नहीं थी, तब उन्होंने थैंक्यू मिस्टर ग्लॉड, लहरों के राजहंस, घासीराम कोतवाल जैसे विश्वप्रसिद्ध नाटकों का मंचन करवाया। इसके साथ ही उन्होंने नाटकों को प्रादेशिक स्तर पर भी निदेर्शित करके उरई को रंगमंच के क्षेत्र में विशेष पहचान दी। रंगमंच और सांस्कृतिक कार्यों के प्रति विशेष रुचि रखने के कारण ही उन्होंने 25 वर्ष पूर्व सांस्कृतिक एवं रंगमंचीय संस्था ‘वातायन’ की स्थापना कर शहर में सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण किया जो आज भी निरन्तर इस ओर प्रगति कर रही है।
रंगमंच के प्रति स्नेह और साहित्य- लेखन के प्रति अनुराग रखने के कारण उन्होंने कई नाटकों तथा कविताओं की सर्जना की। ओरछा की नगरबधू, लाला हरदौल आदि जैसे स्थानीय विषयों के द्वारा उन्होंने बुन्देली संस्कृति को भी जनता के सामने रखा। साहित्य अनुराग के कारण ही वे सेवानिवृत्ति के बाद भी साहित्य से जुड़े रहे। इसी अनुराग के कारण डॉ0 ब्रजेश कुमार ने वर्ष 2005 में उरई से चौमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘स्पंदन’ का प्रकाशन भी शुरू किया। उनके प्रधान सम्पादकत्व में निकलने वाली स्पंदन ने अपने अल्प समय में ही काफी प्रसिद्धि प्राप्त की और देश-विदेश में नाम कमाया।
अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वे काफी समय तक उरई शहर में ही रहे और फिर अपनी आयु और शारीरिक अस्वस्थता के कारण वे अपने इकलौते पुत्र अभिनव उन्मेश कुमार के साथ रहने लगे। अन्तिम समय तक वे किसी न किसी रूप से स्वयं को सक्रिय बनाये रखे रहे। वे अपने पीछे अपनी पत्नी, पुत्री-दामाद, पुत्र-पुत्रबधू, नाती-नातिनों को छोड़ गये।
यह और बात है कि अपनी शारीरिक अस्वस्थता के कारण डॉ0 ब्रजेश कुमार अन्तिम समय में रंगमंच और साहित्य से पूर्ण रूप से नहीं जुड़े रह सके किन्तु यह सत्य है कि उनका जाना रंगमंच के क्षेत्र में, साहित्य के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति है। इस क्षति को लम्बे समय तक भरा जा पाना सम्भव नहीं है। उन्होंने उरई जैसे छोटे नगर को रंगमंच के प्रति, साहित्य के प्रति जागरूक किया और यहां के लोगों में इनके प्रति लगाव भी पैदा किया। उनके निधन पर डॉ0 आदित्य कुमार, डॉ0 अरुण कुमार श्रीवास्तव, डॉ0 अभयकरन सक्सेना, डॉ0 वीणा श्रीवास्तव, डॉ0 एस0के0श्रीवास्तव, डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर, डॉ0 लखनलाल पाल, सुभाष चन्द्रा, रामजी सक्सेना, अश्विनी कुमार गुप्ता, डॉ0 राजेश पालीवाल, डॉ0 हर्षेन्द्र सिंह सेंगर, डॉ0 रवि गर्ग, डॉ0 तारेश भाटिया, डॉ0 राजेन्द्र निगम, डॉ0 डी0 के0 सिंह, डॉ0 ए0के0 निगम, डॉ0 के0 के0 निगम, डॉ0 महेश अरोरा, सुरेन्द्र सिंह कुशवाह, राजपप्पन, डॉ0 स्वातिराज आदि सहित महाविद्यालय परिवार ने तथा जिले के गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी शोक-संवेदनाएं व्यक्त की हैं।
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