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गोपाल कृष्ण 'पंकज' का निधन -साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति

जनपद जालौन के मूल निवासी एवं हिंदी गजल सशक्त हस्ताक्षर श्री गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज' का गत जनवरी को २००११ को छिदवाडा (म० प्र) में लगभग ७७ वर्ष की आयु में निधन हो गया श्री पंकज मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग में अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर पद से रिटायर हुए थे गत ५० वर्षों से वे साहित्य सेवा के प्रति समर्पित थे हिंदी गजल के वे ख्यातिप्राप्त साहित्यकार थे एवं उनकी रचनाएँ आकाशवाणी एवं टी वी चैनलों पर प्रसारित होती थीं । देश की सभी स्तरीय पत्र -पत्रिकाओं एवं काव्य संकलनों में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं । उनके पिता श्री भगवती शरण सक्सेना D A V इंटर कालेज में अध्यापक तथा कुशल चित्रकार एवं कवि थे जिसका प्रभाव उन पर पड़ा था ।
स्व ० पंकज जी एक ग़ज़ल संग्रह 'दीवार में दरार है 'प्रकाशित है । डा सीतेश अलोक ने उने साहित्य पर टिपण्णी की है,"पंकज के कलाम की मौलिकता और विविधता उनकी शक्ति भी है और पहचान भी "बाल स्वरूप राही के शब्दों में ,"पंकज जी की गजलों में प्रेषणीयता ,सहजता और मार्मिकता प्रचुर मात्रा में विद्यमान है "

श्री पंकज के साहित्य की बानगी निम्नांकित है -

उर्दू की नर्म शाख पर रुद्राक्ष का फल है;
सुन्दर को शिव बना रही हिंदी गजल है

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पडोसी
पडोसी के घर तक पहुंचा ,
सितारों के आगे जहाँ जा रहा है

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गर्दिशे
-अध्याय में वह दौर भी जायेगा ,
जब खुदा का नाम भी विज्ञापनों में आएगा

-------------दोहे ----------

फसल
पकी झरने लगी ,आँगन में खलिहान
दाने बिके बाजार , भूखा रहे किसान

साधनाएं
फर्श पर बिखरीं पड़ी है
बांसुरी के गाँव में गोली ली है

रक्त
रंजित पुष्प, टूटे शंख,घायल प्रार्थनायें,
क्या इसी का नाम इक्कीसवीं सदी है

श्री पंकज के निधन पर जनपदका साहित्यजगत जगत अपनी भावभीनीश्रद्धांजलि व्यक्त करता है की। इस अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि गोष्ठी में श्री हरिभुवन श्रीवास्तव, डा राजेन्द्र पुरवार, डा वीणा श्रीवास्तव, रवीन्द्र त्रिपाठी, अश्विनी मिश्रा, डा आदित्य कुमार, डा अभय करन सक्सेना , सतचित आनंद, डा वीरेंद्र, डा कुमारेन्द्र सिंह, अशोक श्रीवास्तव, रामजी सक्सेना ,सुभाष चंद्रा , पूर्णिमा सक्सेना, इंदु सक्सेना, सुमन आनंद, मधु सक्सेना, भारती सक्सेना एवं पुष्पा श्रीवास्तव ने स्व० पंकज जी को श्रद्धा सुमन अर्पित किये


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