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वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग की कार्यशाला - प्रथम दिवस

‘‘हिन्दी और अन्य भाषाओं में तकनीकी शब्दावली का विकास करने के लिए सन् 1961 में वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की गई। इस आयोग का मुख्य कार्य हिन्दी के लिए पारिभाषिक तथा तकनीकी शब्दों का निर्माण करना है। विषय-विशेषज्ञों द्वारा आपसी विचार-विनिमय के बाद अंग्रेजी शब्दों का अनुवाद कर हिन्दी शब्दों का निर्माण किया जाता है।’’ उक्त विचार वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली के वैज्ञानिक अधिकारी डा0 शिवकुमार चौधरी द्वारा व्यक्त किये गये। डा0 शिवकुमार चौधरी यहाँ दयानन्द वैदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उरई द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के प्रथम दिन दिनांक 19 जनवरी 2010 में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। ‘मानविकी और समाजविज्ञान में तकनीकी शब्दावली की उपयोगिता’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में डा0 चौधरी ने कहा कि कंठलंगोट, लौहपथगामिनी, ध्रूमदण्डिका जैसे शब्द आयोग द्वारा नहीं बनाये गये हैं। ऐसे शब्दों को लोग आपस में हास-परिहास द्वारा प्रयोग करते हैं। आयोग शब्द को सर्वमान्य रूप में स्वीकार करने की ओर बल देता है।
(शिवकुमार चौधरी, मुख्य वक्ता)
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स्थानीय संयोजक डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने विषय की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनुवाद के कार्य में तथ्यों और संवेदना का ध्यान रखा जाना चाहिए। अनुवाद मात्र इस कारण से न हो कि किसी अंग्रेजी शब्द को हिन्दी में बनाना है। बहुत से अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं के शब्द हम रोजमर्रा के कार्यों में प्रयोग करते हैं और वे अब अन्तरराष्ट्रीय रूप में भी मान्य हैं, उन्हें उसी रूप में प्रयोग करना चाहिए जैसे-रेडियो, प्लेटफार्म, बस, टिकट, पेंशन आदि।
(वीरेन्द्र सिंह यादव, स्थानीय संयोजक)
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मुख्य अतिथि डा0 देवेन्द्र कुमार ने कहा कि शब्दों को जीवन में आवश्यक माना जाता है क्योंकि एक व्यक्ति जन्म से अन्तिम समय तक शब्दों के द्वारा ही अभिव्यक्ति करता रहता है। इस कारण शब्दों का सही और मान्य स्वरूप ही प्रयोग करना चाहिए।
(देवेन्द्र कुमार, मुख्य अतिथि)
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इस अवसर पर डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘इक्कीसवीं सदी का भारत: मुद्दे, विकल्प और नीतियाँ’ का भी विमोचन किया गया।
(पुस्तक विमोचन)
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पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने बताया कि इस पुस्तक में 69 लेख विभिन्न विषयों से सम्बन्धित हैं। इसमें अर्थव्यवस्था, पंचायती राज, जनसंख्या वृद्धि, समलैंगिकता, कन्या भ्रूण हत्या, आपदा नियंत्रण, बाल विकास आदि विशेष हैं। इन लेखों के द्वारा आम आदमी के जीवन से लेकर भूमण्डलीकरण, आधुनिकता, जनसंचार, पत्रकारिता आदि की व्यापक चर्चा की गई है।
(पुस्तक पर चर्चा करते कुमारेन्द्र)
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डी0वी0 कालेज, उरई के प्राचार्य डा0 अनिल कुमार श्रीवास्तव ने गोष्ठी की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शब्दों के मानक रूप के प्रयोग करने से सभी को सुविधा होती है। इससे आपसी चर्चा में भी दिक्कत की स्थिति नहीं आती है।
(अनिल कुमार श्रीवास्तव, प्राचार्य)
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कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे डा0 हरीमोहन पुरवार ने कहा कि कुछ शब्द समय के साथ लुप्त हो जाते हैं। यह बात इसको सिद्ध करती है कि शब्दों का भी एक व्यक्ति की तरह से जीवन होता है। वह भी समय के साथ जीवित रहता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए मोटरसाइकिल के लिए कभी उपयोग होने वाला फटफटिया शब्द आज बिलकुल नहीं सुनाई देता है। इसी तरह पलंग के लिए इस्तेमाल होने वाला खटिया अब कम से कम सुनाई देता है। शब्दों को जीवित रखने के लिए आवश्यक है कि उनका लगातार प्रयोग किया जाता रहे।
(हरिमोहन पुरवार, अध्यक्ष)
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तकनीकी सत्र में डा0 एस0 पी0 सक्सेना, पूर्व उप-निदेशक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, ने शब्दों के प्रयोग, उनके अर्थ पर व्यापक चर्चा की। उन्होंने वर्कशाप शब्द को स्पष्ट करते हुए कहा कि इस शब्द को कार्यशाला, कर्मशाला के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि जब बौद्धिक चर्चा होती है वहाँ कार्यशाला शब्द का प्रयोग होगा और जहाँ आटोमोबाइल की बात होगी वहाँ कर्मशाला का उपयोग होगा। इसी तरह उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय शब्द के बारे में बताते हुए कहा कि जब एक देश के भीतर की ही बात हो तो वहाँ अन्तर्राष्ट्रीय शब्द का प्रयोग होगा और जब दो देशों के आपसी सम्बन्धों की बात की जाये तो वहाँ अन्तरराष्ट्रीय शब्द लिखा जायेगा।
(एस पी सक्सेना, पूर्व उप निदेशक)
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इस सत्र के विषय-विशेषज्ञ, डी0वी0 कालेज के डा0 आदित्य कुमार ने कहा कि आयोग हिन्दी के प्रामाणिक शब्द तो बना रहा है किन्तु वे अभी जनसामान्य में ज्यादा प्रचलित नहीं हैं। इसके लिए आयोग का यह कार्य होना चाहिए कि वह शब्दों को जन सामान्य तक भी पहुँचाने का प्रयास करे। बच्चों को भी बचपन से पाठ्यक्रम के द्वारा मान्य शब्दों से परिचय करवाया जाना चाहिए, बच्चों के लिए बनाई जा रही वैज्ञानिक फिल्मों में भी तकनीकी शब्दावली का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(आदित्य कुमार, विषय-विशेषज्ञ)
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तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर रहीं डा0 जयश्री पुरवार ने कहा कि आयोग शब्दों के स्वरूप निर्धारण को लेकर बहुत ही अच्छा काम कर रहा है किन्तु इसके बाद भी ये शब्द जन जन तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। कुछ शब्द तो इतने कठिन होते हैं कि उनको समझने में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इस बारे में भी आयोग को ध्यान देना चाहिए।

कार्यशाला में ऋषिकेश से डा0 पूजा त्यागी, बरेली से डा0 दयाराम, झाँसी से डा0 किशन यादव, कानपुर से डा0 मनोरमा, दिल्ली से डा0 जयसिंह, डा0 ब्रजेश सिंह, ललितपुर से डा0 पुनीत बिसारिया, लखनऊ से डा0 रिपुसूदन सिंह के अतिरिक्त स्थानीय प्रतिभागी और विद्वतजन् भी उपस्थित रहे।

कार्यशाला के उदघाटन सत्र का संचालन डा0 अलकारानी पुरवार ने तथा तकनीकी सत्र का संचालन डा0 आनन्द खरे ने किया।
(अलका रानी पुरवार, संचालक)
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